नमस्ते अतिथि
लोधा समाज इंदौर का उद्देश्य समाज के जन-जन तक सेवा सहायता एवं मार्गदर्शन पहुचाना है | लोधा समाज इंदौर सदेव अपने समाज के सदस्यों की प्रगति हेतु नवीनतम टेक्नोलॉजी अपनाने का पक्षधर रही है | लोधा समाज इंदौर वेब-पोर्टल के द्वारा समाजजनों को जोड़ना जिससे समाज संगठित हो सके और आपस में संपर्क स्थापित कर सके ,और इस वेब-पोर्टल के द्वारा इस तरह की सेवाए दी जा रही है, जिसमे लोधा समाज के सदस्यों के पारिवारिक परिवेश को ध्यान में रखते हुए समाज द्वारा संचालित वेब-पोर्टल के माध्यम से बच्चों की पढाई-लिखाई, उनके केरियर एवं व्यावसायिक ट्रेनिंग, आदि कोर्स करने की प्रेरणा एवम सहायता देना साथ ही मेडिकल सुविधाए एवं ब्लड-बैंक के माध्यम से आवश्यकता पड़ने पर उन्हें सहायता उपलब्ध कराना, ऐसे सेवा कार्य किये जायेंगे | साथ ही ऐसे सक्षम समर्थ लोधी बंधू जो इस तरह के सेवा कार्यो में लोधा समाज के माध्यम से सेवा देना चाहते है वे सहर्ष आमंत्रित है |
रानी अवंती बाई लोधी
रानी अवंती बाई लोधी भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम सन् 1857 में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली प्रथम महिला शहीद वीरांगना थी।
वीरांगना रानी अवंती बाई लोधी का जन्म 16 अगस्त 1831 को ग्राम मनकेहणी जिला सिवनी मध्यप्रदेश में हुआ था। इनकी माता का नाम कृष्णा बाई व पिता का नाम राव जुझार सिंह था । इनके पिता जमींदार थे। बाल्यावस्था से ही वीर तथा साहसी अवंती बाई ने बचपन से ही तलवारबाजी और घुड़सवारी सीख लिया था। अवंती बाई का विवाह रामगढ़ रियासत के राजा लक्ष्मण सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह के साथ हुआ। पिता के निधन के बाद विक्रमादित्य सिंह राजा बने। राजा विक्रमादित्य सिंह के अस्वस्थता के फलस्वरुप राज्य संचालन का उत्तरदायित्व राजकार्य में पारंगत उनकी पत्नी रानी अवंती बाई लोधी ने संभालाए इनके दो पुत्र हुए अमान सिंह और शेर सिंह।
गवर्नर जनरल डलहौजी के हड़प नीति के तहत विक्रमादित्य सिंह को अयोग्य और इनके दोनों पुत्रों को नाबालिग घोषित कर रामगढ़ रियासत से कोर्ट आफ वार्ड्स के कब्जे में लेकर ब्रिटिश अधिकारी नियुक्त किए गए। रानी अवंती बाई लोधी ने इन अधिकारियों को रामगढ़ से बाहर निकाल दिए और शासन का संचालन स्वयं किए। रानी ने कृषकों को अंग्रेजों के कर संबंधी निर्देशों को ना मानने का आदेश दिया। इस सुधार कार्य से क्षेत्र में रानी की लोकप्रियता बढ़ी।
मई 1857 में प्रथम भारतीय स्वाधीनता संग्राम प्रारंभ होने पर रानी अवंती बाई लोधी ने ब्रिटिश शासन के विरूद्ध संगठित होकर मातृभूमि को ब्रिटिश शासन को मुक्त करनेए क्रांति का संदेश देने तथा स्वाभिमान जागृत करने राजाओ जमींदारों और माल गुजारो को पत्र इस प्रकार लिखे मातृभूमि की रक्षा के लिए अंग्रेजों से संघर्ष के लिए तैयार रहे या चूड़ियाँ पहनकर घरों में बैठे रहे…..
स्वामी ब्रह्मानंद लोधी जी
भारत वीरो की भूमि है. यहां हर दशक मे अनेक समाजसेवी वीरो ने जन्म लिया है तथा समाज के उत्थान में अपना योगदान दिया है. ऐसे ही समाजसेवी में एक बड़ा नाम स्वामी ब्रह्मानंद लोधी जी का आता है. स्वामी ब्रम्हानंद जी का जन्म आज से लगभग 125 वर्ष पहले उत्तरप्रदेश हमीरपुर जिले की राठ तहसील के बरहरा गाँव मे एक साधारण किसान परिवार मे हुआ था. स्वामी ब्रम्हानंद के बचपन का नाम शिवदयाल था. स्वामी ब्रम्हानंद ने बचपन से ही समाज में फैले अंधविश्वास और अशिक्षा जैसी कुरीतियों का डटकर विरोध किया तथा शिक्षा के क्षेत्र मे बहुत ही सराहनीय कार्य किये. स्वामी जी ने समाज के लोगों को शिक्षा की ओर ध्यान देने हेतु आह्वान किया.
स्वामी ब्रह्मानंद जी की प्रारम्भिक शिक्षा हमीरपुर में ही हुई. इसके पश्चात् स्वामी ब्रह्मानंद जी ने घर पर ही महाभारत, गीता, रामायण, उपनिषद और अन्य शास्त्रों का अध्ययन किया. इसी कारण लोग उन्हें स्वामी ब्रह्मानंद के नाम से बुलाने लगे. ऐसा भी कहा जाता है कि बालक शिवदयाल के बारे में संतों ने भविष्यवाणी कि थी कि यह बालक या तो राजा होगा या प्रख्यात संन्यासी.
बचपन से बालक शिवदयाल का रुझान आध्यात्मिकता की तरफ ज्यादा होने के कारण पिता को डर सताने लगा कि कहीं वे साधु न बन जाएं. इस डर से पिता ने स्वामी ब्रह्मानंद का विवाह सात वर्ष की उम्र में हमीरपुर के ही गोपाल महतो की पुत्री राधाबाई से करा दिया. आगे चलकर राधाबाई ने एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म दिया. विवाह के उपरांत भी स्वामी जी का चित्त आध्यात्मिकता की तरफ ही था. इसकारण स्वामी ब्रह्मानंद जी ने 24 वर्ष की आयु में पुत्र और पत्नी का मोह त्याग दिया एवं गेरुए वस्त्र धारण कर परम पावन तीर्थ स्थान हरिद्वार में भागीरथी के तट पर ‘‘हर की पैड़ी’’ पर 24 वर्ष की आयु मे संन्यास की दीक्षा ली. संन्यास के बाद शिवदयाल लोधी संसार में ‘‘स्वामी ब्रह्मानंद’’ के रूप में प्रख्यात हुए. कुछ समय बाद स्वामी जी को